शनिवार, 12 अप्रैल 2014

मयंक कवि विरचित मोदी चालीसा



श्री गणेश का नाम ले, धर शारद के पाँव |
राजनीति की धूप में, मोदी तरु की छाँव ||
अटल, सत्य संकल्प है, सदा नमो के पास |
उद्यत करने को हुये, हर संकट का नाश ||
भीतर, बाहर सभी विरोधी | जनता कहती मोदी मोदी ||१||
बसपा, सपा असुर हैं भारी | कांग्रेस टोटल अत्याचारी ||२||
तुष्टिकरण, अनुचित आरक्षण | लोकतंत्र का करते भक्षण ||३||
कलि के कुटिल नराधम पापी | झाडू ले फिरते आआपी ||४||
कमल चिन्ह का बजा है डंका | मोदी भारत विमल मयंका ||५||
सुखी होय जग, खिले सरोजा | मोदी मोदी कहे मनोजा ||६||
राष्ट्र, धर्म, संस्कृति के साधक | जगदम्बा के श्रेष्ठ अराधक ||७||
नौ दिन निराहार व्रत रहते | भारत, भारत, भारत कहते ||८||
वन्देमातरम के अनुरागी | द्वेष, दम्भ, छल, छिद्र विरागी ||९||
अदना चाय बेचने वाला | संघर्षों ने जिसको पाला ||१०||
अब कहती है दुनिया सारी | राजनीति में यह अवतारी ||११||
खेले भारत माँ की गोदी | हर हर मोदी, घर घर मोदी ||१२||
आतंकी इण्डिया विरोधी | डर डर मोदी, थर थर मोदी ||१३||
संघ कार्य के राज्य प्रणेता | संत सदृश सज्जन जननेता ||१४||
दीन दशा जब भारत लख्या | सोमनाथ से चले अयोध्या ||१५||
जन्म लियो घर अति साधारण | उगा सूर्य जनु तम संहारण ||१६||
हीराबेन लला जनु मानिक | श्रद्धा भाव निखिल निगमादिक ||१७||
सादर है जन जन से नाता | मोदी भारत भाग्य विधाता ||१८||
कार्गिल जुद्ध कियो अरि भारी | प्रतिपक्षी दल बने मदारी ||१९||
भारत की प्रभुता संकट में | लख भारत माता सांसत में ||२०||
सेना के हित बने प्रवक्ता | गरज उठा शावक बन वक्ता ||२१||
पहना प्रलयंकर का चोगा | गोली का जवाब बम होगा ||२२||
आयो भुज भूकंप भयंकर | सवा साल में आठ लाख घर ||२३||
टाटा को गुजरात बुलायो | फ़ाइल में लाइफ ले आयो ||२४||
इधर धर्म अपनाने वाले | उधर देश को खाने वाले ||२५||
बहु विधि भारत के अपकारी | बहु प्रकार नर भ्रष्टाचारी ||२६||
सबके उर भय एक तुम्हारा | तुम नैया के खेवनहारा ||२७||
स्वयं साधना करके देखा | तुम भारत की जीवन रेखा ||२८||
बहुत दिनों से धरती बंजर | तुम छाये बन मेघ धुरंधर ||२९||
विश्वनाथ जी का अनुमोदन | राजनीति में हो संशोधन ||३०||
इसीलिये तुम काशी आये | धर्मप्राण हरिजन हर्षाये ||३१||
जय जय जय मोदी जन नायक | जड़ता हरो विकास प्रदायक ||३२||
कर्मकुशल संशाधन दोहक | रिपुजन दलन सर्वजन मोहक ||३३||
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा | तुमने एक रंग सब रंगा ||३४||
सबके दिल में कमल खिलाने | ऐक सूत्र जन सभी मिलाने ||३५||
पूरे सारे काज करेगा | यह दिल्ली में राज करेगा ||३६||
शुभ चुनाव का बिगुल बजा है | देवासुर संग्राम मचा है ||३७||
गूँज उठा है सारा अम्बर | यह अंतिम निर्णय का अवसर ||३८||
तैंतिस कोटि देव जागे हैं | देवसुतों से मत मांगे हैं ||३९||
जागो माता बहनों भाई | हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई ||४०||
सावधान मन कह रहा, पूरा भारत देश |
कमल बटन गंगा सदृश, कटे पाप अरु क्लेश ||  
                      

सोमवार, 10 मार्च 2014

निर्वाचन चालीसा



संविधान की ले शपथ, उसको तोडनहार |
             कछु पापी नेता भये, अनुदिन भ्रष्टाचार ||
जोड़ तोड़ के गणित में, लोकतंत्र भकुआय |
हर चुनाव समरूप है, गया देश कठुआय ||  
अथ श्री निर्वाचन चालीसा | जिसने भी जनता को पीसा ||१||
वह नेता है चतुर सुजाना | लोकतंत्र   में  जाना  माना ||२||
धन जन बल युत बाहुबली हो | हवा बहाए बिना चली हो ||३||
झूठी शपथ मातु पितु बेटा | सब को अकवारी भर भेटा ||४||
रसमय चिकनी चुपड़ी बातें | मुख में राम बगल में घातें ||५||
अपना ही घर आप उजाडू | झंडे पर लटकाये झाड़ू ||६||
करिया अक्षर भैंस समाना | लैपटाप का हो दीवाना ||७||
आनन ग्रन्थ पढ़े दिन राती | कुर्सी देख फड़कती छाती ||८||
संसद में करवा दे दंगा | पद मिलते ही होय निहंगा ||९||
अनुदिन मुसलमान रटता हो | राष्ट्रवाद पर वह कटता हो ||१०||
वन्देमातरम को हटवा दे | देशभक्ति के चिन्ह मिटा दे ||११||
खुद को धर्म तटस्थ बतावे | मुरदों पर चादर चढ़वावे ||१२||
क्षेत्रवाद का लिए सहारा | जातिवाद का देता  नारा ||१४||
सांसद और विधायक भाई | बेटा बेटी लोग लुगाई ||१३||
दे कम्बल फोटो खिचवावे | फिर फिर शिलान्यास करवावे ||१४||
खुद ही गोप और खुद गोपी | इसके सर पर उसकी टोपी ||१५||
उजला कुरता मधुरि बानी | दगाबाज की इहै निशानी ||१६||
भय अरु लाजमुक्त अभिमानी | बाहर से दिखता बलिदानी ||१७||
सब कुछ घोंटा सब कुछ टाला | आयेदिन करता घोटाला ||१८||
धरना और प्रदर्शन चारी | दिवस खाय निशि अनशनकारी ||१९||
कविवर कुरता फाड़ अमेठी | परदे के पीछे माँ बेटी ||२०||
तरुणी दीन चढ़ी इक हांथी | नोटों की माला दे साथी ||२१||
पासवान की लिए लंगोटी | राजनाथ बैठाते गोटी ||२२||
नीति अनीति भूल गठबंधन | टकले पर शोभित है चन्दन ||२३||
खींचतान चौचक भाजप्पा | कडुआ थू मीठा गुलगप्पा ||२४||
मोदी जब फोटू खिचवावे | अगल बगल सब खीस दिखावे ||२५||
नंदा पुष्कर सरग सिधारी | शशि थरूर की दूर बिमारी ||२६||
शीला महामहिम पद सोहै | दिल्ली में पगड़ी मन मोहै ||२७||
सयकिल वाहन चढ अखिलेशा | सात समन्दर पार नरेशा ||२८||
उहाँ अमरीका आजम पायो | कुम्भ प्रशासन पाठ पढ़ायो ||२९||
भैंस खोजता फिरे प्रशासन | धरने पर बैठा है शासन ||३०||
अन्ना जी की हरियर पगड़ी | ममता देख भुजाएं फड़की ||३१||
लोकपाल के हम दीवाने | केवल गाँधी जी को माने ||३२||
कहने को खांटी देशी हैं | पंच कोटि बंगलादेशी हैं ||३३||
चीन हमारे सर पर चढ़ता | पाक हमेशा आगे बढ़ता ||३४||
जिनमे दो कौड़ी का दम है | हम उनके सम्मुख बेदम हैं ||३५||
बेकारी का घाव बड़ा है | भत्ता ले चुपचाप पड़ा है||३६||
युवा नशे में चकनाचूरं | कह हनूज दिल्ली है दूरं ||३७||
नकसलवाद दे रहा धमकी | मनबढ़ इस्लामिक आतंकी ||३८||
नर को नारी से लड़वाते | जन को आजादी दिलवाते ||३९||
भैंसा आगे बजी बीन है | बिजली पानी सड़क हीन है ||४०||
सड़सठ सालों से सतत, लहू रहे हैं सोख |
                    भारत माता रो रही, लजा गयी है कोख ||

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

दो घनाक्षरी

(१)
जितने नराधम हैं, आज सभी नेता बनें, इन्हें चुन चुन गोली मार देना चाहिए | 
फूंक देना चाहिए तंदूर की तरह इन्हें, कपड़े की भाँति इन्हें गार देना चाहिए | 
भारत की संस्कृति को नोचने के लिए बने, इनकी रगों में शीशा पार देना चाहिए | 
राष्ट्रद्रोहियों की सजा, मौत से अलग नहीं, मृत्युदेवि कहें दो तो चार देना चाहिए |
(२)
जितनी  लाचारी इस देश में कहीं नहीं है, जनसँख्या बोझ नहीं तुमने बनाया है |
कुछ  गया पेट में तो कुछ पीठ पे भी लदा, बाँटते ही आये हमें बंटना सिखाया है |
पहले  तो चरखा था जिसने था उलझाया, अब तेरा थप्पड़ हमारे हिस्स्से आया है |
झगडे  की जड़ एक नेहरु की नीति बनी, अपना तो खाया हमें नंगा ही नचाया है |



शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

भ्रम टूटा है

सर्जनात्मकता में धैर्य होना चाहिए| फेसबुक अधीर बना देता है| वहाँ लोग आपको लपकने के लिए तैयार बैठे हैं| नारीवादियों को वहाँ पुरुष प्रधान समाज के दर्शन हो सकते हैं| अजनबी लोंगों के अजनबी हाय हैलो किसे बेचैन नहीं कर देते? अंगुलियां दिल की धडकनों से संचालित होने लगती हैं| ना धिन धिन्ना, ना धिन धिन्ना करते हुए टांय टांय फिस्स| एक अदृश्य जगत की दृश्यमान आँखे आपको घूरती रहती हैं| वे अपने भी हो सकते हैं और पराये भी| बंगलादेशी घुसपैठियों के शिविरों का अस्थायी जमावड़ा स्थायी नागरिकता की मांग करने लगता है| अब इसे भ्रम ही रहने देना होगा| यह मेरा अपना पन्ना है| इसमें आपको घुसपैठ की कोई इजाजत नहीं है| आप मुझे पसंद करो या नापसंद| आप मुझे यहाँ से कॉपी नहीं कर सकते, और यदि आपने ऐसा किया तो आपके विचारधारा की कलई उतरने लगेगी| मुझे जो भी मन में आएगा मैं यहाँ करने को स्वतंत्र हूँ|

रविवार, 6 मई 2012

यूपीटीईटी-अनिश्चितता और संत्रास के १८० दिन

अति हो गयी है,आखिर सहने की भी कुछ सीमा होती है|हरामखोरों ने व्यवस्था के बीच से नयी व्यवस्था निकालने का मन बना लिया है और चाहते हैं की हम हाँथ पर हाँथ धरे बैठे रहें|मीडिया भी बराबर की दोषी है|मैं नहीं चाहता था की भाषा की पवित्रता भंग हो किन्तु जिन्हें हराम का खाने की आदत पड़ जाती है वे पक्के लतिहर होते हैं और जब तक उन्हें जी भरकर लतियाया न जाए वे तर्क की कोई भी भाषा सुनने को तैयार ही नहीं होते|आखिर मीडिया युपीटीईटी परीक्षा के बारे में जानती ही क्या है?और इसे महज एक पात्रता परीक्षा क्यों होना चाहिए?लगता है हरामखोरों का कोई अभ्यर्थी इस परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया और उसी का खार निकालने के लिए ये लंठशिरोमणि हमारे पीछे लट्ठ लिए फिर रहे हैं|इन हरामियों को यह भी नहीं पता है की युपीटीईटी परीक्षा का स्तर इतना नीचा रखा गया था की कोई भी कक्षा ८ उत्तीर्ण आसानी से इस परीक्षा में तय समय के अंदर ९० अंक प्राप्त कर सकता था,फिर भी लोग अनुत्तीर्ण हुए और उच्च अकादमिक योग्यताधारी अनुत्तीर्ण हुए|बी.एड. डिग्री धारक पास हो गए, बी टी सी वाले अपेक्षित परिणाम नहीं ला सके|पी एच डी तो एकदम टांय टांय फिस्स ही हो गए|लिहाजा इन लोगों ने एक नया शिगूफा छोड़ा|कहने लगे की युपीटीईटी में भ्रष्टाचार हुआ है..अबे काहे का भ्रष्टाचार?और क्या सबूत है तुम्हारे पास भ्रष्टाचार का?कहते हैं की २७ हजार ओएमआर शीट पर सफेदा लगा हुआ था|कन्नौज से कंचन त्रिपाठी परेशान हैं, बताती हैं की भूलवश उनसे भी उक्त ओएमआर शीट पर कहीं सफेदा लग गया था|उन्होंने मुझे फोन किया और जानना चाहा की कहीं उनका भी ओएमआर शीट तो इन हरामियों के पास नहीं पहुँच गया|अब मैं कोई प्रशासनिक अधिकारी तो हूँ नहीं की उनकी बात का कोई समुचित उत्तर दे पाऊं किन्तु इतना अवश्य है की मैंने युपीटीईटी ही नहीं ऐसी अनेक परीक्षाएं देखी हैं, जहाँ परीक्षार्थी धड़ल्ले से सफेदे का प्रयोग करता है और यह रिजेक्शन का कोई आधार भी नहीं बनता, और फिर यह भी तो हो सकता है की अपनी गर्दन फंसती देख कर किसी राजनैतिक षड्यंत्र के तहत अधिकारियों ने खुद ही २७ हजार ओएमआर शीट चुने हों और बेचारे अभ्यर्थियों को फ़साने के लिए झूठमूठ सफेदा लगा दिया हो|समरथ को नहीं दोष गुसाईं..जिन हरामखोरों ने इस प्रक्रिया को रोकने के लिए नक़ल माफियाओं,शिक्षा माफियाओं,शिक्षा शत्रुओं,बकवास सेलेक्शन अधिकारी(बी.एस.ए) अन्य प्रशासनिक अधिकारियों और सबसे बढ़कर राजनैतिक सपाई गुंडों के इशारे पर कभी सरिता शुक्ला तो कभी कपिलदेव लाल बहादुर यादव का मुखौटा धारण किया हो..वे इस प्रक्रिया को रोकने के लिए पवित्र और अपवित्र किसी भी तरह के हथकंडे अपना सकते हैं| सुनने में आया है की सरकार पराशिक्षकों की नियुक्ति करने का मन बना चुकी है|वैधानिक दृष्टि से यदि कोई इसके विरुद्ध अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाता है तो कोई तात्कालिक बाधा भी नहीं है, सरकार कह देगी की हम शिक्षकों की नियुक्ति थोड़े ही कर रहे हैं, यह तो पराशिक्षक हैं और इसलिए इन पर एन सी टी ई के प्रावधान नहीं लागू होने चाहिए|केन्द्र सरकार के पास राष्ट्रपति के निर्वाचन में सपा के तलुवे चाटने की मजबूरी है लिहाजा ऐसा हो भी सकता है|केन्द्र सरकार ने २००९ में शिक्षा का क़ानून पारित किया,इससे पहले ही माननीय मुरली मनोहर जोशी ने सर्व शिक्षा अभियान का श्रीगणेश कर दिया था|तत्कालीन एन डी ए सरकार के इस कदम को हरामजादे तथाकथित धर्मनिरपेक्षों ने शिक्षा का भगवाकरण कहा|जोशी जी डिगे नहीं और सर्व शिक्षा अभियान को मजबूती से लागू करवा कर ही माने|केन्द्र से एन डी ए सरकार की विदाई होते ही शिक्षा को फिर से एक दोयम दर्जे की वस्तु माना जाने लगा|जहाँ तक मुझे ज्ञात है भारत का एक सामान्य नागरिक भी मूल्य संवर्धित कर के अंतर्गत प्रत्येक वस्तु पर २ प्रतिशत शिक्षा कर देता है और हरामियों के पास शिक्षा के मद में खर्च करने के लिए फूटी कौड़ी भी नहीं है| लोग आज में जीते है,कल क्या होगा उन्हें चिंता नहीं है|तात्कालिक लाभ और व्यक्तिगत हितों के लिए हम दीर्घकालिक उद्देश्यों तथा सामूहिक हित साधन पर ध्यान देना ही नहीं चाहते|आप किसी से भी पूछ लीजिए की वे अपने बच्चों को किस अध्यापक से पढ़वाना चाहेंगे?उनसे, जो कक्षा ८ के स्तर का भी प्रश्न हल नहीं कर सके अथवा उनसे जो अकादमिक में कमजोर होने के वावजूद कक्षा ८ स्तर तक के समस्त प्रश्नों को कुशलता के साथ कम से कम समय में हल कर देते हैं और जिनके पास बाल मनोविज्ञान की अच्छी समझ भी है,क्योंकि मनोविज्ञान पर आधारित प्रश्नों कों हल करने में भी उनकी कुशलता की परीक्षा ली जा चुकी है|शायद आपको संतोषजनक उत्तर प्राप्त हो जाए?अब क्या यह मान लिया जाए की जिस बात को एक सामान्य सा व्यक्ति समझता है उसे समाजवादी नहीं समझता तो यह भी सही नहीं है|वस्तुतः समाजवादी एक कठिन किस्म के जीव होते हैं और अनर्गल करना तो इनके शिराओं में रक्त बनकर बहता है|यह मामले कों सुलझाना ही नहीं चाहते क्योंकि इससे इनके राजनैतिक स्वार्थ की सिद्धि होती है|मैं जानता हूँ की इसे पढ़ने के बाद बहुत से समजवादी पिट्ठुओं को बहुत बुरा लगेगा और वे यह भी कह सकते हैं की अभी तो सरकार ने अपना रूख भी स्पष्ट नहीं किया है फिर आप सरकार कों विपक्षी दलों की भाँती क्यों कोस रहे हैं?इसका सीधा सा जवाब है की आप आँख खोलकर देखना ही नहीं चाहते|क्या आपको अखिलेश यादव द्वारा चुनाव पूर्व की गयी घोषणा याद है?अरे छोडिये अभी हाल ही में राष्ट्रीय सहारा और अमर उजाला नामक दो समाजवादी मुखपत्रों ने युपीटीईटी के संदर्भ में जिस तरह की अखबारबाजी की है क्या उसे देखकर भी आपको लगता है की हमारे साथ न्याय होगा और अखिलेश नामक यह आस्ट्रेलियाई विद्यार्थी आपको आपकी नौकरी चांदी के थाल में सजाकर आपको देगा?कभी नहीं|राम गोविन्द चौधरी ने बयान दिया और समाजवादियों की तरफ से इसका कोई खंडन भी नहीं आया|क्या युपीटीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थी इतने मूर्ख हैं की आपकी मंशा कों भी नहीं समझते?स्पष्ट है की अब ईंट का जवाब पत्थर से देने का वक्त आ गया है|मैं कम्युनिस्ट नहीं हूँ किन्तु इस बात को अच्छी तरह से जानता हूँ की जब लोकतंत्र विफल हो जाता है तो बन्दूकतन्त्र, लोकतंत्र का एक अच्छा विकल्प हो सकता है| सरकार हमारी बात नहीं मानना चाहती क्योंकि ऐसा करने से उसकी काली कमाई पर ग्रहण लग जाएगा|बी.एस.ए एक एक नियुक्ति में चार चार लाख रूपये नहीं कमा पायेंगे,लिहाजा हमारे पास आर्म्ड रिबेलियन (सशस्त्र क्रांति) के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता और अभ्यर्थी इस बात कों जानता है की परीक्षा के मद में १० हजार रूपये खर्च करने के बावजूद ठगा जाने पर चार हजार रूपये और खर्च कर एक रिवाल्वर खरीदना और आततायियों कों सजाये मौत देने के बाद जिस तरह के शहादत की उपलब्धि होगी वह केवल ७२ हजार अभ्यर्थियों के हित में ही नहीं होगा बल्कि इसके बाद शिक्षा के क्षेत्र में एक नए युग का पदार्पण भी होगा|आप इसे भडकाना कह सकते हैं,और हाँ मैं अभ्यर्थियों कों भडका ही रहा हूँ क्यूंकि मेरे पास और कोई भी विकल्प शेष नहीं है|मीडिया ने हमें दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका है|न्यायालय से हमें प्रतिदिन तारीख पर तारीख मिल रही है|शासन, दुशासन बन कर जनता रुपी द्रौपदी का चीर हरण करना चाहता है और शिक्षा माफियायों ने हमें कहीं का छोड़ा ही नहीं|ऐसे में हमारे पास विकल्प ही क्या है?यदि कोई अभ्यर्थी टी.जी.टी सोशल साइंस के लिए अपना अभ्यर्थन करना चाहे तो उसे इतिहास,राजनीति शास्त्र,अर्थ शास्त्र और भूगोल में से कम से कम दो विषयों के साथ स्नातक उत्तीर्ण होना पड़ेगा|अब जिनके पास इनमे से एक ही विषय है वह क्या करेगा?घास छीलने के लिए भी एक विशेष प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है और मुझे लगता है की जीवन के चालीस वसंत देख चुके नाकारा अभ्यर्थियों कों अब इस उम्र में कोई चरवाहा विश्वविद्यालय घास छीलने का भी प्रशिक्षण नहीं देना चाहेगा|सरकार को हमारी स्पष्ट चेतावनी है की मौजूदा विज्ञापन के प्रारूप में बिना कोई छेड़खानी किये तत्काल नियुक्ति प्रक्रिया प्रारम्भ करवाए अन्यथा इसके घातक परिणाम होंगे और इन सभी परिणामों की जबावदेही आगे चल कर अखिलेश और उसके गुर्गों को ही देना होगा और मैं यह चाहूँगा की इस पत्रक को अधिक से अधिक संख्या में प्रकाशित करवा कर बांटा जाए ताकि जुलाई तक कोई स्थायी समाधान न निकलने की दशा में सशस्त्र आंदोलन की भूमिका भी तैयार हो सके|

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

युपीटीईटी-न उगलते बने,न निगलते बने

महाभारत में एक श्लोक है –
यस्म यस्म विषये राज्ञः,स्नातकं सीदति क्षुधा|
अवृद्धिमेतितद्दराष्ट्रं,विन्दते सहराजकम्||
अर्थात, हे राजन!जिन जिन राज्यों में स्नातक क्षुधा से पीड़ित होता है,उन उन राज्यों की वृद्धि रुक जाती है और वहाँ अराजकता फ़ैल जाती है|बुभुक्षितं किं न करोति पापं की तर्ज पर महाभारतकार ने राजा को चेतावनी देते हुए स्पष्ट रूप से यह निर्देशित किया है की योग्यतम को उसकी आजीविका से विरत करना,अराजकता को आमंत्रित करना है|यह तब की बात है,जब गिने चुने मेधावी छात्र ही स्नातक हो पाते थे और जब इस देश में प्रजा के व्यापक हित में अपने स्वार्थ की तिलांजलि देने वाले कर्मठ,नीतिनिपुण और धर्मग्य राजा हुआ करते थे|आज परिस्थितियां परिवर्तित हो चुकी हैं|किसी भी परीक्षा में ३२ प्रतिशत अंक पाने वाला विद्यार्थी अनुत्तीर्ण होता है और २९ प्रतिशत मत पाने वाला उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनता है|१ अरब जनता की आँखों के सामने पागलों की तरह गोलियाँ बरसाने वाला जेल में भी फाइव स्टार स्तर तक की सुविधाओं का लाभ उठाता है और जिसने अपने पूरे जीवन में एक चींटी भी नहीं मारी,वह नारी होने के वावजूद दुस्सह यंत्रणा भोगने को विवश है,क्योंकि वोट की राजनीति ने उसके माथे पर आतंकवादी होने का कलंक लगा दिया है|स्थितियां दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही हैं और हम कानून व्यवस्था के नाम पर निर्दोषों को दण्डित करने तथा दोषियों को बचाने के मिशन में तन्मयता के साथ जुटे हुए हैं|नक्सली आकाश से नहीं टपकते,जब राज्य के हाथों में स्थित दंड निरंकुश हो जाता है, तब मासूम भी अपने हांथो में आग उगलने वाली बन्दूक थामने को विवश हो जाता है|
बात युपीटीईटी के सन्दर्भ में हो रही है|विगत १८ अप्रैल को, जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में टीईटी के सन्दर्भ में गठित हाई पावर कमेटी ने अपनी संस्तुति मुख्यमंत्री को प्रेषित कर दिया है|समाचार पत्रों के आलोक में यह तथ्य सामने आया है की युपीटीईटी परीक्षा की शुचिता पर कोई भी प्रश्नचिन्ह नहीं उठाया जा सकता अतः युपीटीईटी को भंग न करते हुए इसे अर्हताकारी परीक्षा के स्थान पर, पात्रताकारी परीक्षा बना दिया जाय|ध्यान देने योग्य बात है की अगले ही सत्र में यदि सहायक अध्यापकों की रिक्तियां तत्काल प्रभाव से नहीं भरी जाती हैं तो उत्तर प्रदेश में सर्व शिक्षा अभियान पूरी तरह से विफल होने के कगार पर खडा होगा|अतः पूर्व विज्ञापित नियम में संशोधन करना न सिर्फ इस प्रक्रिया को उलझा देना है वरन प्रदेश ही नहीं,देश को भी शिक्षा के मद में मिलने वाले आर्थिक सहायता पर संकट के बादल मडराने के प्रबल आसार है|हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा की इस देश को शिक्षित बनाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं अपना अमूल्य योगदान देती हैं और यदि उत्तर प्रदेश के प्राथमिक शिक्षा विभाग में विज्ञापित नियुक्तियों के संदर्भ में वैधानिक खींचातानी और राजनैतिक हीलाहवाली का कोई भी मामला इन अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के संज्ञान में आता है तो देश को प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में मिलने वाली आर्थिक मदद रोकी जा सकती है|अभी भी इस देश में शिक्षा के मद में सकल घरेलु उत्पाद का महज ४.१ फीसदी ही व्यय किया जाता है और प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में तो यह १ प्रतिशत से भी कम होगा|ऐसी स्थिति में पूर्व विज्ञापित प्रक्रिया में छेड़छाड़ अभ्यर्थियों के मन में रोष का संचार करेगा और पूरे प्रदेश को अराजकता की स्थिति का भी सामना करना पड़ सकता है|
युपीटीईटी के संदर्भ में प्रक्रिया में छेड़छाड़ करने के पीछे न तो कोई विधिक शक्ति है और न ही कोई नैतिक आधार,ऐसे में,अगर विज्ञप्ति निरस्त होती है तो इसका एकमात्र कारण राजनैतिक विद्वेष की भावना ही होनी चाहिए|यह कहना की अन्य राज्यों ने भी टीईटी को मात्र एक पात्रता परीक्षा ही रखा है और इसे अर्ह्ताकारी नहीं बनाया है तर्कशास्त्र के नियमों की घनघोर अवहेलना है|क्या माननीय जावेद उस्मानी जी यह बताने का कष्ट करेंगे की अन्य राज्यों में अथवा केन्द्रीय अध्यापक पात्रता परीक्षा में सकल रिक्तियों के सापेक्ष कितने प्रतिशत अभ्यर्थी उत्तीर्ण हुए हैं और उत्तर प्रदेश में उत्तीर्ण अभ्यर्थियों का संख्या बल कितना है?यह हास्यस्पद ही है की इतना बड़ा प्रशासनिक अधिकारी इतने छोटे तथ्य की उपेक्षा करता है और जिसने इतने छोटे तथ्य की उपेक्षा की हो उसे इतना महत्वपूर्ण दायित्व किस आधार पर प्रदान किया गया है?
शायद अब अभ्यर्थियों को भी इस तथ्य का ज्ञान होने लगा है की सरकार हमारे पक्ष में नहीं है बल्कि यह कहना ज्यादा उचित रहेगा की सरकार प्राथमिक शिक्षा के ही पक्ष में नहीं है अन्यथा हमारे साईकिल वाले बाबा,पगड़ी वाले बाबा से प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापकों की नियुक्ति हेतु २०१५ तक का समय न मांगते|हद हो गयी है,अभ्यर्थी परीक्षा दे चुके हैं,अपने अंकपत्र सह प्रमाणपत्र ले चुके हैं, बैंक ड्राफ्ट बनवा चुके हैं,लंबी लम्बी पंक्तियों मंग लग कर अपने आवेदन भी जमा कर चुके हैं,प्रत्येक अभ्यर्थी के लगभग १० हजार रूपये खर्च हो चुके हैं और श्रीमान जी का कहना है की हम प्रक्रिया में बदलाव लायेंगे क्योंकि इससे पहले लोग हांथी पर चढते थे और आज हमने साईकिल का आविष्कार कर लिया है|संख्या में अति न्यून अकादमिक समर्थक भी सरकार के कंधे पर बन्दूक रखकर निशानेबाजी से नहीं चूक रहे है|भाई, कहा भी गया है – जब सैयां भये कोतवाल तो डर काहे का?मुलायम आते ही नकल विरोधी अध्यादेश को रद्द कर देते हैं तो उनका पुत्तर आते ही टीईटी को रद्द क्यों न कर दे? वैसे भी अखिलेश ने अपने चुनावों में इस तरह की उद्घोषणा पहले ही कर चुकी है और परीक्षा में असफल अभ्यर्थी अखिलेश भैया के पाँव पूज ही रहे हैं, लिहाजा टीईटी को निरस्त होना ही चाहिए|साथ ही बलात्कार पीडिता को नौकरी देने संबंधी बयान पर भी तो अमल करना है|वैसे भी, समाजवादियों की सरकार बनने से पहले ही,शपथ ग्रहण से भी पहले उत्तर प्रदेश की जनता ने चुनाव परिणामों की घोषणा के महज एक सप्ताह के अंदर जिस तरह की अराजकता झेली है उसे देखकर यही लगता है की आने वाले समय में यह अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार होगी और कहीं ऐसा न हो की हिन्दुस्तान के राजनैतिक इतिहास में अखिलेश का शासन एक काले अध्याय के रूप में जाना जाय, फिलहाल संभावना तो यही है और उसके संकेत भी मिलने लगे हैं|
अब अपने मूल विषय पर लौट चलते हैं,हमारे देश में बेसिक शिक्षा की प्रवृत्ति कैसी रही है और समय समय पर इस क्षेत्र में हमारे देश में किस प्रकार के परिवर्तन हुए है इन सब बातों का जानना बहुत ही जरूरी है|मुसलमानों के आने से पहले हमारे देश में बालक की प्राथमिक शिक्षा का प्रारम्भ माँ की गोद में होता था|यह वह समय था जब बालक को अक्षरारंभ के समय ग से गदहा नहीं, ग से गणेश पढाया जाता था|कहना न होगा की हमारे जीवन मूल्य आधुनिक मनोवैज्ञानिक अवधारणाओं से इस कदर मेल खाते थे की उनमें विरोध की कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं थी|हम पहले ही इस तथ्य से परिचित थे की शिक्षा का मूल उद्देश्य बालक के पूर्व ज्ञान में वृद्धि कर क्रमिक ढंग से बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है|स्पष्ट है ग से गदहा वाला पूर्वज्ञान बालक को गदहा ही बना सकता है,सर्वशास्त्र विशारद गणेश कदापि नहीं|जब इस देश में मुसलमानों का आगमन हुआ तब सबसे अधिक चोट हमारे प्राथमिक शिक्षा पर ही पड़ी|मदरसों में दी जाने वाली दीनी तालीम बालक को आत्मकेंद्रित बनाती थी,यह उसके व्यक्तित्व में सहिष्णुता के स्थान पर धर्मान्धता का संचार करती थी|मुग़ल काल में दारा शिकोह के सत्प्रयासों से मकतबों में दीनी तालीम के साथ साथ बुनियादी तालीम देने की भी व्यवस्था की गयी, किन्तु यह व्यवस्था बहुत दिनों तक नहीं चली और अंग्रजों के आगमन के साथ हमारी शिक्षा व्यवस्था का जो बंटाधार हुआ, वह आज तक बदस्तूर जारी है|
मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के आलोक में यह बात जग जाहिर है की व्यक्ति के व्यक्तित्व में उसकी शैशवावस्था और उसका बाल्यकाल सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं|व्यवहारवाद कहता है की एक शिशु को एक कुशल चिकित्सक, एक कुशल अभियंता,एक कुशल अभिनेता,एक कुशल दार्शनिक इत्यादि किसी भी कौशल के लिए प्रारम्भ से ही प्रशिक्षित किया जा सकता है और उसके अंदर बचपन में डाले गए संस्कार इतने दृढ होते हैं की वे पचपन क्या,पचासी क्या, आजीवन पीछा नहीं छोड़ते|ठीक यही बात कुसंस्कारों के संदर्भ में भी सत्य है|यहाँ पर संस्कार देने वाले शिक्षकों के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और अध्यापक शिक्षा की महत्ता का पता चलता है|२२ और २३ अक्टूबर १९३७ में वर्धा नामक स्थान पर डॉ जाकिर हुसैन की अध्यक्षता में तत्कालीन भारतीय राजनीती में अपनी प्रभुता स्थापित कर चुके गांधी ने भारतीय विद्यालयों में प्राथमिक शिक्षा का एक बेहतरीन माडल तैयार किया|आमतौर से इसे भारत में प्राथमिक शिक्षा की वर्धा योजना अथवा बुनियादी तालीम के नाम से जाना जाता है|आज भी इसे शिक्षा जगत में बालक केंद्रित शिक्षा का बेमिसाल उदाहरण समझा जाता है|वर्धा योजना में बालक की शिक्षा को लेकर जिन उच्च आदर्शों की कल्पना की गयी थी, उनकी प्राप्ति बुनियादी तालीम के लिए प्रशिक्षित अध्यापकों के अभाव में संभव ही नहीं थी|अतः शिक्षकों को बुनियादी तालीम के लिए प्रशिक्षित करने हेतु १ वर्षीय अल्पकालीन और २ वर्षीय दीर्घकालीन पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गयी|उस समय जबकि उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति गिने चुने ही मिलते थे, इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश की योग्यता हाई-स्कूल निर्धारित की गयी थी|चूँकि उस समय तक भारत स्वतंत्र नहीं हो पाया था, अतः यह योजना असफल रही और स्वतंत्रता के पश्चात विकास के मुद्दों पर लालफीताशाही,नौकरशाही हावी हो गयी, लिहाजा सर्व शिक्षा के उद्देश्यों को ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया|
तब से अब तक प्राथमिक शिक्षा को लेकर एक से एक बेहतरीन माडल प्रस्तुत किये जाते रहें और कभी नौकरशाही तो कभी हमारे देश का माननीय वर्ग उन सभी माडलों को नकारता रहा|शिक्षा को लेकर न तो कभी केन्द्र सरकार गंभीर रही और न ही किसी राज्य ने ही इस संदर्भ में अपनी सक्रिय रूचि प्रदर्शित की|सभी ने तालीम को एक निहायत ही गैर जरूरी चीज समझा और अपने राजनैतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए, जानबूझ कर जनता को अशिक्षित रखा|शिक्षकों के चयन में कभी भी पारदर्शिता नहीं बरती गयी यहाँ तक की प्रोफेसर साहब का कुत्ता भी डाक्टरेट की डीग्री लेकर सड़कों पर खुलेआम घूमने लगा और जब अति हो गयी तब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को हस्तक्षेप करना पड़ा और शोध के क्षेत्र में भी पात्रता का निर्धारण करना पड़ा|यहाँ भी संपन्न वर्ग की ही सुनी गयी|पात्रता के निर्धारण में न्यूनतम ५० प्रतिशत (आरक्षित वर्ग हेतु) तथा ५५ प्रतिशत (सामान्य वर्ग हेतु) की बाध्यता के साथ अकादमिक उपलब्धियों को सर्वोपरी माना गया|समझ में नहीं आता की जब मनोविज्ञान पृथक पृथक कार्यों के लिए पृथक पृथक अभिरुचियों की बात करता है, तो प्रत्येक पदों के लिए पृथक पृथक चयन परीक्षाएं क्यों नहीं आयोजित की जाती?और जब इस तरह का कोई नवाचार हमारे सामने है तो कुत्सित राजनीति द्वारा राह को कंटकाकीर्ण करना किस तरह से जायज है?
हमारे देश का संविधान पद और अवसर के समता की बात करती है और राजनीति वर्ग विशेष का तुष्टिकरण करती है|जब इससे आजिज आकर हमारे देश का कोई प्रतिभाशाली युवक आजीविका की खोज में दूसरे देशों का आश्रय ग्रहण करता है तो इसे प्रतिभा पलायन कहा जाता है|स्वतंत्रता के बाद से आज तक हम खोते ही आ रहे है और अगर यही नीति रही तो हम आगे भी खोते रहेंगे –
निजामे मयकदा साकी बदलने की जरूरत है|
हजारों हैं सफे ऐसी,न मय आई,न जाम आया||