वन,उपवन,गिरि,सरिता,गह्वर।
कण-कण,तृण-तृण,अणु जड़-चेतन॥
आज प्रफुल्लित रामलला को-
अवध-सिँह को विधिक समर्थन॥
अब हम वक्ष तान बोलेँगे
रामलला की भूमि हमारी॥
राम रम्मैया भारत संस्कृति,
बाबर तो था अत्याचारी॥
आर्य कहाँ से भारत आये?
बतलाओ वह देश कौन सा?
कहाँ सभ्यता पुरुष उपजते?
सच बोलो परिवेश कौन सा?
भारत छोड़ नहीँ पायेगा,
ऐसी कोई उपमा मूरख॥
जिसमेँ पुरुषोत्तम के सम्मुख,
टिमटिम करने का भी साहस॥
जिनको मिथक कहा था तुमने
ठुकराया अस्तित्व बोध भी॥
उनके पदचिन्होँ को छूकर,
आज चकित है,स्वयं शोध भी॥
गिरि ऊपर उड़ते थे जिनको-
तूने डाइनासोर कहा है॥
इन्द्रवज्र को क्या समझोगे?
परिवर्तित जलवायु गढ़ा है॥
तुममे यदि इतनी मति होती,
बंदूकेँ यूँ नहीँ बदलती॥
कभी स्वयं को क्रांतिदूत तो
कभी दमन का साधन कहती॥
हा हा,ही ही से आगे भी
ओ रे पगले! जीवन धारा॥
वह क्या समझेगा? जो केवल-
मार्क्स और मार्केट का मारा॥
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