शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

नमन हमारा

लाली छाये दशों दिशा में, जगमग जगमग हो जग सारा |

नवल वर्ष के नव प्रभात को विनत हमारी, नमन हमारा ||

शीतल, मलय सुवासित नंदन वन सा मह मह महके भारत |

कोकिल सा कूके इस जग में खग सा चह चह चहके भारत |

फटे शत्रुओं पर बन घातक ज्वाला भक् भक् भभके भारत |

शौर्य, तेज का तीक्ष्ण हुताशन बनकर दह दह दहके भारत |

तड तड टूटे सारे बंधन जीर्ण शीर्ण हो सारी कारा |

नवल वर्ष के नव प्रभात को विनत हमारी नमन हमारा ||

शेष फिर कभी वंदे भारत मातरम

मनोज कुमार सिंह मयंक

एक हिंदू आतंकवादी

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

वन्देमातरम कहना होगा

बेशक तुमने अपमान किया।खण्डित भारत का मान किया॥
यह वंदेमातरम सम्प्रदाय का परिचायक है,मान लिया॥
आओ,मै तुम्हे बताता हूँ,इस वंदेमातरम की सत्ता।
तुमको उसका भी ज्ञान नहीँ जो जान चुका पत्ता-पत्ता॥
जो ज्ञानशून्य भू पर बरसी,बन,शून्य-ज्ञान की रसधारा।
दशमलव दिया इसने तब,जब था बेसुध भूमण्डल सारा॥
जब तुमलोगोँ के पुरखोँ को ईमान का था कुछ भान नहीँ।
कच्चा ही बोटी खाते थे, वस्त्रोँ का भी था ज्ञान नहीँ।
जंगल-जंगल मेँ पत्थर ले, नंगे-अधनंगे फिरते थे।
सर्दी-गर्मी-वर्षा अपने उघरे तन पर ही सहते थे।।
तब वंदेमातरम के साधक, माँ चामुण्डा के आराधक।
अज्ञान तिमिर का जो नाशक,था ढूँढ़ लिया हमने पावक॥
मलमल के छोटे टुकड़े से, उन्मत्त गजोँ को बाँध दिया।
दुःशासन का पौरुष हारा, पट से पाञ्चाली लाद दिया॥
जब वंदेमातरम संस्कृति को था किसी सर्प ने ललकारा।
तब लगा अचानक ही चढ़ने जनमेजय के मख का पारा॥
यह वंदेमातरम उसी शक्तिशाली युग की शुभ गाथा है।
जिसके आगे भू के सारे नर का झुक जाता माथा है॥
इसका प्रथमाक्षर चार वेद,द्वितीयाक्षर देता दया,दान।
तृतीयाक्षर माँ के चरणोँ मेँ,अर्पित ऋषियोँ का तप महान॥
पञ्चम अक्षर रणभेरी है,अंतिम मारु का मृत्युनाद।
चिर उत्कीलित यह मंत्र मानवोँ की स्वतंत्रता का निनाद॥
जो स्वतंत्रता का चरम मंत्र,जो दीवानोँ की गायत्री।
जो महाकाल की परिभाषा,भारत माँ की जीवनपत्री॥
जो बलिदानोँ का प्रेरक है,जो कालकूट की प्याली है।
जो है पौरुष का बीजमंत्र, जिसकी देवी माँ काली है॥
जो पृथ्वीराज का क्षमादान, गोरी का खण्डित हुआ मान।
जो जौहर की हर ज्वाला है, जो आत्मत्याग की हाला है॥
जिसमेँ ऋषियोँ की वाणी है, जो शुभदा है, कल्याणी है।
जो राष्ट्र-गगन का इन्द्रधनुष,उच्चारण मंगलकारी है॥
जिसमेँ दधीचि की हड्डी है, हाँ,हाँ जिसमेँ खुद चण्डी है।
जो पुरुषोत्तम का तीर धनुष,हाँ जिसमेँ हैँ नल,नील,नहुष॥
राणा-प्रताप का भाला है, विष कालकूट ने डाला है।
जो प्रलय मचाने वाला है,इसको विद्युत ने पाला है॥
इसमेँ शंकर का दर्शन है, जिसका भावार्थ समर्पण है।
जो बजरंगी का ब्रम्हचर्य, जो आत्मबोध का दर्पण है॥
यह वागीश्वरी का सौम्य तेज,अम्बर से झरता झर-झर है।
यह चामुण्डा के हाँथो मेँ शोणित छलकाता खप्पर है॥
जो मनुपुत्रोँ के लिये स्वर्ग, सर्वात्मवाद की धुरी रही।
जिसमेँ देवोँ की दैविकता अमृत बरसाती सदा रही॥
उस ऐक्य मंत्र के ताने को,तेजस्वी गैरिक बाने को।
उर्जा की दाहक गर्मी को, उस मानवता को,नरमी को॥
गंगाधर के शिव स्वपनोँ मेँ, नेताजी के बलि भवनोँ मेँ।
गौतम के मंगल कथनोँ मेँ, मीरा के सुन्दर भजनोँ मेँ॥
यह किसने आग लगाया है, जग को उल्टा बतलाया है॥
यह किसने आग लगाया है, जग को उल्टा बतलाया है॥
यह वंदेमातरम शब्द नहीँ यह भारत माँ की पूजा है।
माँ के माथे की बिँदिया हैश्रृंगार न कोई दूजा है॥
इसमेँ तलवार चमकती है मर्दानी रानी झाँसी की।
इसमेँ बलिदान मचलता है,दिखती हैँ गाँठे फाँसी की॥
मंगल पाण्डे की यादेँ हैँ।शिवराज नृपति की साँसेँ हैँ॥
यह बिस्मिल के भगवान वेद।यह लौह पुरुष का रक्त स्वेद॥
यह भगत सिँह की धड़कन है।आजाद भुजा की फड़कन है॥
यह गंगाधर की गीता है, चित्तू पाण्डे सा चीता है।
जलियावाला की साखी है।हुमायूँ बाहु की राखी है॥
यह मदनलाल की गोली है।मस्तानी ब्रज की होली है॥
यह चार दिनोँ के जीवन मेँ चिर सत्य,सनातन यौवन है।
यह बलिदानोँ की परम्परा अठ्ठारह सौ सत्तावन है॥
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसा के बन्दे सब इसको गाते हैँ।
सब इसे सलामी देते हैँ,इसको सुन सब हर्षाते हैँ॥
लेकिन कुछ राष्ट्रद्रोहियोँ ने है इसका भी अपमान किया।
इस राष्ट्रमंत्र को इन लोगोँ ने सम्प्रदाय का नाम दिया॥
जाओ,जाकर पैगम्बर से पूछो तो क्या बतलाते हैँ?
वे भी माता के पगतल मेँ जन्नत की छटा दिखाते हैँ।
यह देखो सूली पर चढ़कर क्या कहता मरियम का बेटा।
हे ईश्वर इनको क्षमा करो जो आज बने हैँ जननेता।।
ये नहीँ जानते इनकी यह गल्ती क्या रंग दिखलायेगी।
इस शक्तिमंत्र से वञ्चित हो माँ की ममता घुट जायेगी॥
गोविन्द सिँह भी चण्डी का पूजन करते मिर जायेँगे।
शिव पत्नी से वर लेकर ही संघर्ष कमल खिल पायेँगे।
फिर बोलो माँ की पूजा का यह मंत्र कम्यूनल कैसे है?
माँ को महान कहने वाला शुभ तंत्र कम्यूनल कैसे है?
तुम केवल झूठी बातोँ पर जनमानस को भड़काते हो।
गुण्डोँ के बल पर नायक बन केवल विद्वेष लुटाते हो॥
लेकिन,जब यह घट फूटेगा।जब कोप बवंडर छूटेगा॥
जब प्रलय नटी उठ नाचेगी।भारत की जनता जागेगी॥
तब देश मेँ यदि रहना होगा।तो वंदेमातरम कहना होगा॥
मनोज कुमार सिंह ‘मयंक’

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

तुने शब्दों की मर्यादा भंग किया है

माना है दुष्प्राप्य लक्ष्य पर नहीं असंभव|

परमपिता की इस धरती पर सब कुछ संभव|

मूर्ख है जो कहता अस्तित्व तुम्हारा कम है|

अखिल विश्व संस्कृति तरु के जड़ में ही हम है|

हम हिंदू हैं जड़ चेतन को अपना माना|

माया ममता भस्म पहन केसरिया बाना |

हमीं सनातन सत्य सदा उद्घाटित करते |

हमीं विश्व में नयी चेतना का स्वर भरते |

हम आलोक पुत्र, अमर संस्कृति संवाहक

और सनातन धारा के हम ही तो वाहक |

हम तम के मस्तक पर चढ ब्रम्हास्त्र चलाते |

असुरों की छाती पर भगवा ध्वज फहराते |

हम आसेतु हिमालय भारत माँ के बेटे |

विधि के लिखे लेख अटल भी हमने मेटे |

खेल खेल में केहरी के दांतों को तोड़ा |

कालीदह को भी विषहीन बना कर छोड़ा |

देवतुल्य थे जो उन आर्यों के ही वंशज |

सबसे पहले हम आयें वसुधा के अग्रज |

और ब्र्म्ह्वादी तू क्या उल्टा कहता है |

महासती माता को ही कुल्टा कहता है |

हाय सनातन संस्कृति को शतखंड किया है |

तूने शब्दों की मर्यादा भंग किया है |

हम दिति और अदिति के सुत वसुधा के मुख हैं |

हमको पाकर इस दुनिया में सुख ही सुख है |

हमने कब मक्का को शोणित से नहलाया ?

अथवा जेरूसलम में भगवा ध्वज फहराया ?

हमने हृदयों को जीता जब भूमि जीतते थे वे |

महाबुद्ध को अपनाया जब अस्थि सींचते थे वे |

महावीर जिन कहलाये भावों को जीता |

युद्धभूमि में श्रीहरी के मुख निकली गीता |

वाही अमरवाणी गुरुओं के मुख से गूँजी |
वेदवाणी सारंग ग्रन्थ साहिब में कूकी |

सुनो वही हिंदू है जो प्रणवाक्षर जपता |

एक उसी सतनाम में हरपल रमता रहता |

अरिहंताणं णमों भाव में रत रहता है |

महाबुद्ध के श्रीचरणों में नत रहता है |
जो गीता, गंगा, गायत्री का साधक है |
कण कण शंकर, भारत माँ का आराधक है |

अग्निपंथ का अनुयायी जो सार भस्म करता है |

महानिशा में महाचिता पर महारास रचता है |

जो किन्नर के स्वर में गाता, तांडव भी करता है |

और अधर्मी के तन से तत्काल प्राण हरता है |

और धर्म भी कहाँ व्यक्तिगत, वही पद्यति अब भी |

हाँथ जोड़ पूजा करने की सतत संस्कृति अब भी |

क्या तुम गुदा द्वार से खाते, जब हम मुख से खाते ?

फिर बोलो इस दुनिया को तुम उल्टा क्यों बतलाते ?

कहाँ मुखौटा है हिंदू , किस मुख ने यह पहना है ?

यह मेरी भारत माता का सर्वोत्तम गहना है |

परमपिता ही पति जिसके, सिंदूर स्वर्ण हिंदू है |

भारत माता के मस्तक पर शोभित शुभ बिंदु है |
चलो मुखौटा ही अच्छा तुम सनातनी हम हिंदू |

तुममे हिंदू नहीं बिंदु पर हम तो शाश्वत सिंधु |

तुमने छोड़ा हम अपनाएं, हम छोड़े तुम गाओ |

आओ हम भी जूठा खाएं तुम भी जूठा खाओ |

मुझको जूठन भी मंगल पर तेरा तो नाजिस है |

समझ गया मैं भी असमझ अब, यह किसकी साजिश है |

किन्तु चक्र, दुष्चक्र, कुचक्रों की भी गति होती है |

भले कहें हम जड़ पत्थर को उनमे मति होती है |

इसीलिए तो अनगढ़ में भी प्रभु मूरत बन जाती |

तुम सूरा कहते ही रहते वह सूरत बन जाती |
अंतरग्रही प्राणियों ने जो ब्रम्ह वमन अपनाया |

वह सब कुछ भी तो मंगल है, धन्य देव की माया |

अभी शैशवावस्था में पर कलियुग तो कलियुग है |

पर असत्य के साथ विभव है, इसी बात का दुःख है |

करुणा, मैत्री और उपेक्षा, मुदिता मंगलकारी |

चलो बुद्ध की सहज मान्यता भी मैंने स्वीकारी |

वज्रपाणि श्रीमहाबुद्ध ने गीता ही तो गाया |
वेद लवेद बना कर छोड़ा, वेदों को अपनाया |

निर्ग्रंथों ने उसी मनीषा को स्वीकार किया है |

जिस पर दश के दश गुरुओं ने अपना प्राण दिया है |
भारत की यह चिंतन धारा अविछिन्न हिंदू है |

राजनीती के समरांगण में छिन्न भिन्न हिंदू है |

शून्यवाद, दशमलव दिया इस हेतु चलो गरियायें |

हमको गणित नहीं आता तो रोमन ही अपनाएं |

किन्तु जहाँ भी दीप जलेगा, ज्योतित तो हिंदू है |
यही नींव में और शिखर पर शोभित तो हिंदू है |

कोख लजाते धिक् धिक् भारत तुझको लाज नहीं आती ?

माँ को माँ कहने से हटते नहीं फट रही क्यों छाती ?

हिंदू ही सारा भारत, यह भारत ही हिंदू है |

मानवता का शीर्ष मुकुट मणि, इंदु शिखर इंदु है |

और व्युत्पति हिंदू की, शुभ हनद पारसी भाषा |

नष्ट हो गया, शेष किन्तु हम, खोज रहा है नासा |

हमने सेतु बनाकर बाँधा, देशों को जोड़ा है |

तू तो उनका अनुगामी, केवल जिसने तोड़ा है |

राणा, शिवा, दधिची, इंद्र और रामकृष्ण से ज्ञानी |

बाली, बलि, महाबली, बालक अभिमन्यु का पानी -

आज नीलाम हुआ देखो, कितने मुख बने मुखौटे ?

पिता हमारे पूर्वज अब भी हिंदू ही कहलाते |

उदधि दुह्नेवालों ने जो रत्न चतुर्दश पाया |

जिसको वेदों, उपनिषदों ने मुक्त कंठ से गाया |
राग, रागिनी, ताल, छंद, स्वर, अक्षर सब हिंदू है |
हम पर निर्भर है जग सारा, कब निर्भर हिंदू है ?

हम उदात शिव भाव से जगती से जो कुछ लेते हैं |

यग्य याग अपना सहस्त्र गुण कर इसको देते हैं |

अंधाधुंध विदोहन करने में रत दुनिया सारी |

प्रलयंकर से खेल रही बस प्रलय की है तैयारी|

प्रकृति प्रदूषित कर डाला है सारा मनुपुत्रों ने |

यही सिखाया है क्या हमको ब्रम्ह, धर्मसूत्रों ने ?

नहीं नहीं विघटन की बेला पर अब पुनः विचारें |

विकृति त्याग माँ को अपनाएं संस्कृति को स्वीकारें |

किन्तु विकृति को संस्कृति कहना कहाँ न्यायसंगत है ?

यहाँ वहाँ हर जगह भयावह दहशत ही दहशत है |

दहशतगर्दी के विरुद्ध अब शस्त्र उठाना होगा |
स्वयं विष्णु बनकर असुरों पर चक्र चलाना होगा |

और हमें यह उर्जा भी तो हिंदू शब्द ही देगा |

विधि आधारित इस जगती से न्यायोचित हक लेगा |
बौद्ध, जैन, सिख, शैव, शाक्त और सनातनी सब हिंदू |

एक एक जन हिंदू ही हैं बोलो कितने गिन दूँ ?

जहाँ कहीं भी न्याय हेतु प्रतिरोध दिखाई पडता |

मानवता के हेतु कहीं भी रोष दिखाई पडता |
और विवेक की अग्नि में जल कर क्षार व्यर्थ परिभाषा |

विश्व प्रेम की राह चले जन कहीं न तिरछी भाषा |

वहाँ वहाँ हिंदू स्थापित, हिंदू मानवता है |

इसे मिटा देने को तत्पर, आतुर दानवता है |

द्वैत मानता है जग तो अद्वैत मानते है हम |

तुमको भी तो कहाँ पृथक विद्वेष मानते हैं हम ?

हम तो बस उनके विरुद्ध जो द्वेष कर रहे हमसे |

ग्रन्थ ही जो उल्टा सिखलाता, व्यर्थ जल रहे हमसे |

और सुनो यह धर्म ही है जो एकसूत्र करता है |

कारण और निवारण कर्ता, भर्ता, संहर्ता है |

तुम भी इसे मानते हो पर स्वयं भ्रमित, भ्रम रचते |

मैं क्या तुम्हे फसाउंगा तुम खुद ही जाते फंसते |

ब्रम्ह निवारण है भ्रम का तुम भ्रम को देव बताते |

और समर्थन में जाने कितने यायावर आते |

जो बल को कमियां कहते, कमियों को बल बतलाते|

धूप-छाँव का खेल परस्पर, इंद्रजाल दिखलाते |

हा हा यह माया का दर्शन, जृम्भणअस्त्र स्वागत है |

इससे ऊपर भी कुछ है जो आगत और विगत है |

उसी तत्व की शपथ मुखौटा नहीं वदन है हिंदू |

स्थापित ब्रम्हांड जहाँ वह दिव्य सदन है हिंदू |

इससे रौरव भी रोता हर नरक त्रस्त रहता है |

इसका शरणागत हो करके स्वर्ग स्वस्थ रहता है |

हिंदू भाव धरी विरंचि जब चौदह तल रचता है |

उसी भाव को धार विष्णु रज गुण लेकर रमता है |

और भाव में कमी हुई तो रूद्र कुपित हो जाते |

इंद्र श्रृंखला तोड़ गगन में संवर्तक छा जाते |

मुझे करो मत विवश करूँ मैं आवाहन रुद्रों का |

नंदिकेश, शिव, वीरेश्वर का अनबंगी क्रुद्धों का |
कृत्या इसके पास भयावह दिवारात्रि रहती है |

इसका इंगित पाकर सोती इंगित पा जगती है |

यह अथर्व ब्रम्हास्त्र भूर्भुवः स्वः में प्रलय मचेगा |

डामर के हांथों में डमरू, डिंडिम नाद करेगा |

फिर मत कहना हिंदू सर्वदा आतंकी होते है |

मुझे सांत्वना दो लोगों अब देखो हम रोते हैं |
प्रतिरक्षा की तैयारी करना कुछ गलत नहीं है |

सुन लो जो सामर्थ्यवान है, प्रतिपल वही सही है |
इसीलिए श्री राम कालिका की पूजा करते हैं |
धनुष बाण लेकर हांथों में क्रीं काली कहते हैं |

वन्देमातरम इसका बोधक क्रीं काली फट स्वाहा |

किन्तु शक्तिमानों ने भी कब संस्कृति ग्रसना चाहा |
आज इसे ग्रसने की कोशिश करते इसके सुत हैं |
बुत से नफरत करने वाले मंदिर में कुछ बुत है |

इन्ही बुतों को खंडित करने दयानंद आये थे |

इन्हीं के लिए पुनर्जागरण में माँ ने जाए थे |

किन्तु किसी ने भी तो इसको नहीं मुखौटा बोला |
गंगा माँ की जलधारा में नहीं जहर था घोला |
आज हुआ जो पाप भयानक तुमसे अनजाने में |
शायद मैं भी इसका भागी हूँ किंचित माने में |
अगर तुम्हे कुछ कहना ही था मुझको बोला होता |
एक मंच क्या तेरी बलि मैं यह जग ही तज देता |
किन्तु सतत जीवन पद्यति को तूने गाली दी है |
कह डालो जो भी कहना है अब भी अगर कमी है |
चलो तुम्हारे ही स्वर में कुछ और कह रहा हूँ मैं |
कवितायें खुद ही बहती तुम कहो रच रहा हूँ मैं |
और तुम्हारे स्वर में हिंदू आतंकी, पापी है |
जब देखो उत्पात मचाने वाला अपराधी है |
भ्रष्ट कर दिया इसने पावन पथ उस पैगम्बर का |
जो मरियम का पति जन्नत में, यीशु जिसके दर का |
इसके सारे संत सदा रमणी में ही रमते हैं |
झूठ बोलते हैं मर्यादा भंग किया करते हैं |
हर हिंदू के प्रति कुछ गाली क्रतिधार्मिता होती |

हिंदू पथ पर चल जन्नत में नहीं मिलेगा मोती |
इसके ठेकेदार चुनिन्दा, कुछेक संगठन ही हैं |
और इसे प्रोत्साहित करने के भी अपराधी हैं |
सदा मार खाना और पिटना नियति हिंदुओं का हो |
कभी फैलना नहीं, सिमटना नियति हिंदुओं का हो |

किन्तु हमारे मत में धर्मविरोधी कब हिंदू है ?

प्रगतिशीलता, नवाचार प्रतिरोधी कब हिंदू है ?

नहीं कभी संकीर्ण रहा अब भी उदार यह ही है |

रूढ़ी और पाखण्ड विरोधी नवाचार यह ही है |

इस उदारता का प्रतिफल भी इसने खूब चुकाया |

अपनी सब सीमायें खोईं टूटा फूटा पाया |

चलो मिला जो भी अच्छा है, वह भी टूट रहा है |
देखो कितना क्षेत्र हमारा हमसे छूट रहा है |

इस पर रुकने और विचार करने का समय नहीं है |
अब तो किंचित भी विलाप करने का समय नहीं है |

पांचजन्य के हांथो को गांडीव उठाना होगा |

अगर हमें जिन्दा रहना है उन्हें सुलाना होगा |

नहीं तो फिर आने वाली पीढियां हमें कोसेंगी |

नहीं सोचने को कुछ होगा जब भी वे सोचेंगी |

इसीलिए पुरखों की तुमको शपथ सुनो, अब जागो |

चाहे कोई कुछ भी बोले डटे रहो, मत भागो |

तुमको बहकाने को पग पग पर दानव मायावी |
किसकी ममता में खोए, क्षणभंगुर सब दुनियावी |
सुनो मोक्ष पाने का पथ बस शरशय्या पर सोना |
अगर नहीं इसको मानोगे, व्यर्थ पड़ेगा खोना |
यह दुर्लभ मानव तन केवल कुरुक्षेत्र ही तो है |

और तुम्हारी कीर्ति रश्मियाँ यत्र तत्र ही तो है |

चलो, उठो, लपको सूरज को यह मीठा फल तेरा |

तुमको भडकाने का किंचित नहीं स्वार्थ कुछ मेरा |

बस मैं यही कहूँगा अपनी ताकत को पहचानो |

बजरंगी के ब्रम्हचर्य हिंदू की ताकत जानो |
कितने जामवंत आयेंगे बोलो तुम्हे उठाने ?

कुम्भकर्ण बन कर सोये हो भेजूं किसे जगाने ?

पहचानों इन शब्दों में ही वेदमंत्र है प्राणी |

संसृति रवि किरणों ने पहले सुनी वेद की वाणी |

उसे सरल करने को उपनिषदों ने जोर लगाया |

व्यर्थ हुआ जब इतिहासों ने छंद बद्ध कर गाया |
महाकाव्य भी जब थक बैठे तुम्हे जागते मानव |
गुरुवाणी में गीता गूंजी, वही रूद्र का तांडव |
नेति नेति का अंत नहीं है कोई अंतिम भू पर |

ऐसा कोई शब्द नहीं जो नहीं गया हो छू कर |

तुम हो राम कृष्ण के वंशज, रोम रोम में रमता |

तुम ही उसको तज देते हो, वह तुमको कब तजता ?

जो तेरे भीतर बाहर है, उसको नमन हमारा |
ब्रम्ह कहे या ईश्वर बोले, एक वेद की धारा |
इसी सत्य की चिर शाश्वत धारा हिंदू है |

हमको तो प्राणों से भी प्यारा हिंदू है |

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

वेक अप इंडिया

यदि आप हिंदू, हिन्दुधर्म की रक्षा नहीं करेंगे तो कौन करेगा? यदि भारत माँ की संताने ही उसके धर्म का पालन न करेंगी तो उसे कौन बचायेगा?केवल भारत ही भारत को बचा सकता है| भारत और हिंदू धर्म एक है|हिंदू धर्म के अभाव में भारत का कोई भविष्य नहीं है|हिंदू धर्म, भारत की कब्र में चला जायेगा|तब भारत पुराशास्त्रियों और पुरातत्वज्ञों का विषय मात्र रह जायेगा और तब भारत न तो देशभक्ति वाला देश रह जायेगा और न एक राष्ट्र|

श्रीमती बासंती देवी (डा.एनी बेसेंट )

यह आर एस एस के विचार नहीं हैं|हिंदू जागरण मंच ने इसे नहीं कहा|किसी हिंदू आतंकवादी को ऐसा कहते मैंने नहीं सुना|आचार्य गिरिराज किशोर, प्रवीन तोगड़िया,अशोक सिंघल या योगी आदित्यनाथ ने पुरातत्व संग्रहालय वाली भाषा बोली है की नहीं यह मैं नहीं जानता|यह भाषण तो एक ऐसे हिंदू आतंकवादी ने बोला है जिसका जन्म १ अक्टूबर १८४७ को लन्दन में हुआ|१८८२ तक वह एक ईसाई रहीं|१८८९ तक उनके दार्शनिक विचारों का परिपक्वन होता रहा,इसी वर्ष उन्होंने अपने आपको थियोसोफिस्ट घोषित किया|उन्होंने १८९३ में हिंदू शब्द का मुखौटा पहना|७ जुलाई १८९८ को सेन्ट्रल सनातन कालेज नहीं सेंट्रल हिंदू कालेज की स्थापना की, जो आगे चलकर प्रातः स्मरणीय महामना मदन मोहन मालवीय जी द्वारा स्थापित कशी हिंदू विश्वविद्यालय का आधार बना|डॉ. एनी बेसेंट को भी शब्दों का निरुक्तिक विन्यास करना आता था|

जब डॉ. अफीज मोहम्मद सैयद ने ब्रिटिश एनसाइक्लोपीडिया में लिखा ” विश्वबंधुत्व और जगंमैत्री की भावनाओं से परिश्रुत होने पर भी श्रीमती बेसेंट को वेदों और ऋषियों के देश भारत से,गौरवपूर्ण अतीत के अधिकारों पर अब दुर्दिन में फंसे और चारों ओर से निन्दित भारत माता की संतान से विशेष प्रेम था| तब उन्होंने हिंदुत्व को ही संबोधित किया|

प्रत्येक देश का अपना एक राष्ट्रिय चरित्र होता है|मनोविज्ञान में इस पर व्यापक शोध हुए हैं|जो बात एक संस्कृति में सत्य है, वह दूसरी संस्कृति पर थोपना न सिर्फ हास्यास्पद है वरन आत्महंता है| मिस्त्र और मेसोपोटामिया ने पुरे विश्व को रिलीजन दिया, यूनान ने ब्यूटी दिया,रोम ने ला दिया,इरान ने प्योरिटी दिया,चल्दिया ने साइंस दिया और भारत ने धर्म| मैं अपने पहले के ब्लॉग “धर्म क्या है’ में इस विषय पर पहले ही लिख चूका हूँ|फिर भी पता नहीं क्यों जो लोग न तो पन्ने पलट कर देखना चाहते हैं और न ही संदर्भो को समझना चाहते हैं, न जाने लिखवास की किस अन्तःप्रेरणा के वशीभूत होकर बिना किसी सन्दर्भ,उद्धरण और साक्ष्य के प्रस्तुत किये ही वैचारिक विकृति के प्रतीक संशय ग्रस्त लेखन में ही अपने वृद्ध पौरुष का मिथ्या प्रदर्शन करते नहीं अघाते|

कहा जाता है की अंग्रेजों ने इंदु अथवा सिंधु को इंडो कहा और यह इंडियन हो गया| अरबों ने सिंधु को हिंदू कहा और यह हिन्दुस्थान हो गया| इंडियन ओशेन अथवा हिंद महासागर भी तो हिंदू ही है| अब यह संशय होगा की अगर हिंदू शब्द हिंदुओं की देन होती तो वेदों में इसका उल्लेख क्यों नहीं है? पुराणों में तो होना ही चाहिए| वेदों में आर्य है, अनार्य है, दस्यु है, दास है, ब्राम्हण है, क्षत्रिय है, वैश्य है, राजा है, शुद्र है तो हिंदू क्यों नहीं? अरे भैया आपने गीता पढ़ी है? त्रैगुण्यविषया वेदाः, निःस्त्रैगुन्यों भवार्जुन अर्थात वेद सत्व, रज और तम की ही चर्चा करते हैं, अर्जुन तू इससे परे हो जा| फिर वेदों में निः स्त्रैगुन्यता का प्रतीक यह शब्द हिंदू आता कहाँ से? आपने बृहस्पति आगम पढ़ी है? चलिए मैं उसका एक श्लोक बताता हूँ…….हिमालयात समारभ्य यावत इंदु सरोवरम|तं देव निर्मितं देशं हिन्दुस्थानाम प्रचक्षते|| अर्थात हिमालय से प्रारंभ होकर इंदु सरोवर (हिंद महासागर) तक यह देवताओं द्वारा निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है| कम से कम बृहस्पति आगम तो तब ही लिख दिया गया था जब इस्लाम का कहीं अता पता भी नहीं था और ईसा मूसा तो अपने अस्तित्व में भी नहीं आये थे| अगर आपकी मान्यता के मुताबिक हिंदू एक फारसी शब्द है और फारसी में समस्त भारतीय स का ह हो जाता है तो सरस्वती हरह्वती क्यों नहीं हुई? समरकंद हमरकन्द क्यों नहीं हुआ? सीता की हिता क्यों नहीं कहा गया? सावित्री को हवित्री क्यों नहीं कहते?शायद को हायद क्यों नहीं कहा जाता? सारे जहाँ से अच्छा को हारे जहाँ से अच्छा क्यों नहीं कहते? साला को हाला क्यों नहीं कहा जाता? सूफी को हूफी क्यों नहीं कहते? सिलसिला को हिलहिला क्यों नहीं कहा जाता? सफा को हफ़ा क्यों नहीं कहा जाता? शमशुद्दीन को हम्हुद्दीन क्यों नहीं कहते? इल्तुतमिश को इल्तुत्मिह् काहे को नहीं नहीं कहा जाता और तो और ईरानियों का पौराणिक वंश भी अफरा सियाब की जगह अफरा हियाब होना चाहिए था| ऐसा तो होता नहीं की भाषागत अक्षमता की वजह से किसी शब्द को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया जाए और शेष शब्दों में मनचाहा परिवर्तन कर दिया जाए| निरुक्त की दृष्टि से भी मातृ का मदर और मैटर होना तो आसान है किन्तु सिंधु का हिंदू हो जाना सिरे से ही गलत है|बीच के बिंदु को छोड़कर शेष दोनों अक्षर पूरी तरह से परिवर्तित हो जाएँ, यह कहाँ से संभव है?

सनातन धर्म, वैदिक धर्म, आर्य धर्म, ब्राम्हण धर्म, आर्ष धर्म, आर्यत्व, हिंदुत्व, मानवता इत्यादि इसके पर्यायवाची हैं जो हिंदू नामक एक व्यापक शब्द में इसी भांति समाहित हैं जैसे शर्बत में शक्कर और जल| बौद्ध, जैन, आर्य, अनार्य, सिख, वैष्णव, शाक्त, शैव, गाणपत्य, तंत्रागम इत्यादि हिंदू रूपी विशाल वट वृक्ष की शाखा – प्रशाखाएं हैं| गर्व से कहो की हम हिंदू हैं किसी हिंदूवादी संगठन द्वारा आविष्कृत नया नारा नहीं है बल्कि सम्पूर्ण विश्व में भारत की अप्रतिम सांस्कृतिक चेतना के प्रतीक स्वामी विवेकानंद की सिंह गर्जना है| इंडोनेशिया में हिंदू को हिंदू आगम कहा जाता है|

यं वैदिकाः मंत्रदृशः पुराणा

इन्द्रं, यमं मातरिश्वानमाहुः|

वेदान्तिनो निर्वचनीय मेकं,

यं ब्रम्ह शब्देन विनिर्दिशंती |

शास्तेती केचित, कतिचित कुमारः,

स्वामिति, मातेति, पितेती भक्त्या|

बुद्ध्स्तथार्ह्न्नीति बौद्ध जैनः,

सत श्री अकालेती च सिक्ख सन्तः|

यं प्रार्थयन्ते जग्दिशितारं|

स एक एव प्रभुरद्वितीयः|

अर्थात मन्त्रदृष्टा ऋषियों ने वेदों और पुराणों में जिन्हें इंद्र, यम, अर्यमा और अश्विनी कह कर पुकारा है, वेदान्तियों ने जिस अनिर्वचनीय को ब्रम्ह नामक शब्द से निर्दिष्ट किया है| शास्ता, कुमार, माता, पिता और स्वामिभक्ति के रूप में हम जिस परम तत्व को पूजते हैं बौद्धों ने जिन्हें बुद्ध और जैनियों ने जिन्हें अर्हत कह कर पुकारा है| सिख संतों ने जिस परमात्मा को सत् श्री अकाल का संबोधन दिया है, वह हिंदुओं का जगदीश्वर एक ही है|

हिंदू शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य अमृत में एक बड़ा ही विचारोत्तेजक लेख लिखा है|आचार्य जी के अनुसार ”फारसी में हिंदू शब्द यद्यपि रुढ हो गया है तथापि यह उस भाषा का नहीं है|लोगों का ख्याल की फारसी का हिंदू शब्द संस्कृत सिंधु का अपभ्रंश है, वह लोगों का केवल भ्रम है|ऐसे अनेक शब्द हैं,जो भिन्न-भिन्न भाषाओँ में एक ही रूप में पाये जाते हैं|यहाँ तक की उनका अर्थ भी कहीं कहीं एक ही है; पर वे सब भिन्न भिन्न धातुओं से निकले हैं|” फारसी में हिंदू शब्द का अर्थ है चोर, डाकू, रहजन, गुलाम, काला, काफ़िर इत्यादि|क्या एक ऐसा शब्द जिसमें स्पष्ट रूप से अपमान परिलक्षित होता हो कोई जाति बडे ही गौरव के साथ अपना लेगी और जबकि इससे स्पष्ट रूप से उसकी पहचान जुडी हो| नहीं कदापि नहीं, और क्या अब तक इस तथ्य से हमारे पूर्व पुरुष अनजान रहे होंगे,ऐसा भी नहीं है|अब प्रशन यह उठता है की आखिर हिंदू शब्द का सर्वाधिक प्राचीन उल्लेख किस ग्रन्थ में मिलता है और वहाँ उसका अर्थ क्या है? हिंदू शब्द का सर्वाधिक पुराना उल्लेख अग्निपूजक आर्यों के पवित्रतम ग्रन्थ जेंदावस्ता में मिलता है? क्यों वेदों में क्यों नहीं? क्योंकि अग्निपूजक आर्य और इन्द्र्पुजक आर्य एक ही आर्य जाती की दो शाखाएं थी|इस्लामिक बर्बरता का सबसे पहला निशाना यही बना|अग्निपूजक आर्यों की पूरी प्रजाति ही नष्ट कर दी गयी|उनके पवित्रतम ग्रन्थ का चतुर्थांश भी नहीं बचा| जेंदावस्ता और वेद में ९० फीसदी समानता है, कुरान और वेद में २ फीसदी| वस्तुतः जेंदावस्ता और वेद लगभग समकालीन माने जा सकते हैं| ईसाईयों के अनुसार “बाइबिल” का पुराना भाग ईसा मसीह से भी पांच हजार साल पुराना है|our zendavesta is as anciat as the creation;it is as old as the sun or the moon.इसी जेंदावेस्ता में हनद नाम का एक शब्द मिलता है और हिन्दव नाम के एक पहाड़ का भी वर्णन मिलता है| जेंदावेस्ता का यह हनद ही आज का हिंदू और हिन्दव हिंदुकुश नाम की पहाड़ी है| अब प्रश्न यह उठता है की जब पारसी और वर्तमान हिंदू दोनों ही आर्य फिर उन्हें पारसी और हमें हनद क्यों कहा गया? स्पष्ट है भौगोलिक आधार पर भिन्नता प्रदर्शित करने के लिए| अब इस पारसी/हिब्रू हनद या हिंदू का अर्थ भी समझ लीजिए| इसका अर्थ होता है विक्रम, गौरव, विभव, प्रजा, शक्ति प्रभाव इत्यादि|यह अर्थ न तो अपमानजनक है और न ही अश्लील| इसी लिए हिंदुओं ने इसे अपने प्रत्येक परवर्ती ग्रंथो में भारत,सनातन,आर्य इत्यादि के पर्यायवाची के रूप में ज्यों का त्यों स्वीकार किया है|

एतत्देशप्रसुतस्य सकाशादाग्रजन्म:|

स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन, पृथिव्याः सर्वमानवा:||

अर्थात इस प्रकार देश में उत्पन्न होने वाले, अपने पहले के लोगों से शिक्षा ग्रहण करें|पृथ्वी क्व समस्त मानव अपने अपने चरित्र से इस लोक को शिक्षा प्रदान करें|यह हिंदुत्व का आदर्श है |

त्यजेदेकं कुलस्यार्थे,ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत|

ग्रामं जनपदस्यार्थे, आत्मार्थे पृथ्वीं त्यजेत ||

अर्थात कुल के लिए स्वयं का, ग्राम के लिए कुल का,जनपद के लिए ग्राम का और मानवता के लिए पृथ्वी तक का परित्याग कर दे| इस तरह का उपदेश हिंदुओं को परंपरा से प्राप्त है|

यूँ तो कहने को बहुत से लोग अपने आपको धरती पुत्र कहते मिल जायेंगे किन्तु माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः अर्थात धरती माता है और हम पृथ्वी के पुत्र हैं का स्पष्ट उद्घोष करने के कारण वास्तव में हिंदू ही समाजवादी धरतीपुत्र कहलाने का वास्तविक अधिकारी है| हिंदू नमक शब्द पर भ्रम का वातावरण सृजित करने वाले तथाकथित छद्म (अ)बुद्धिजीवी प्राणी हिंदू शब्द के कुछ और विशलेषण देखें -

हिन्सायाम दुश्यते यस्य स हिंदू – अर्थात हिंसा से दूर रहने वाला हिंदू

हन्ति दुर्जनं यस्य स हिंदू – अर्थात दुष्टों का दमन करने वाला हिंदू

हीं दुष्यति यस्य स हिंदू – अर्थात हिंसकों का विनाश करने वाला हिंदू

हीनं दुष्यति स हिंदू – अर्थात निम्नता को दूषित समझने वाला हिंदू

आपको इसमें से जो भी हिंदू अच्छा लगता हो आप चुन सकते है….यहाँ कम से कम इतनी आजादी तो है ही| अच्छा अब हिंदू शब्द की एक परिभाषा भी दिए देते है, हो सकता है आपको कुछ अच्छा लग जाये|

गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ: मति:|

पुनर्जन्मनि विश्वास:,स वे हिन्दुरिती स्मृत:||

अर्थात गोमाता, ओंकार और पुनर्जन्म में आस्था रखने वाला हिंदू |डॉ भीमराव अम्बेडकर जी भी इस तथ्य से अपरिचित नहीं थे इसीलिए जब विभाजनकारी सिखों ने अपने आपको हिंदुओं से अलग चिन्हित किये जाने की मांग की, तो वे तन कर खड़े हो गए और बौद्ध,जैन,सनातनी,सिख सभी को हिंदू माना|वेदों में हिंदू का पर्यायवाची शब्द भारत या आर्य शताधिक बार आया है| विष्णुपुराण में तो हिंदुओं के नाम भारत की पक्की रजिस्ट्री ही हो गयी है, वह भी चौहद्दी बांधकर|ध्यान दीजियेगा -

उत्तरं यद् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिण|

वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र संतति:||

अर्थात जो समुद्र से उत्तर है (चौहद्दी न. १ ) और हिमालय से दक्षिण है (चौहद्दी न. २ ) वह भारत नाम का भूभाग है और उसकी संतति, संतान (हिंदू ) भारतीय हैं|

जहाँ तक मेरी जानकारी है| यह श्लोक ईसा या मूसा से कुछ पहले का तो होगा ही और नहीं तो गुप्तकाल का होना तो निश्चित ही है| कलिका पुराण और मेरु तंत्र में हिंदू ज्यों का त्यों आया है|वर्तमान हिंदू ला के मुताबिक वेदों में विश्वास रखने वाला हिंदू माना गया है|आज तो ९० प्रतिशत हिंदुओं ने वेद देखा भी नहीं होगा तो क्या हिंदू ला के अनुसार वे हिंदू नहीं होने चाहिए| स्पष्ट है की हिंदू शब्द आर्य और भारत की ही भांति श्रेष्ठता और गौरव का बोधक होने के कारण स्वयं में पूर्ण है और आस्तिक, नास्तिक वेद, लवेद के आधार पर कोई भेद विभेद नहीं करता|

हिंदुओं को उनके जातीय चेतना से पृथक करने और आत्म विस्मृति के निरंतर प्रयासों ने ही आज पुरे भारत में विभाजन से पूर्व की स्थिति का निर्माण कर दिया है|आश्चर्य की बात तो यह है की लगातार २ सौ सालों तक जिस आत्मविस्मृति की मदिरा पिलाकर अंग्रजों ने सम्पूर्ण भारत में शासन किया,आजादी के पश्चात कांग्रेस और अन्य तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल और छद्म बुद्धिजीवी आज भी जनता को वही मदिरा पिला रहे हैं|विभाजन के समय लीगी नेताओं द्वारा लड़ के लिया है पाकिस्तान,हंस के लेंगे हिंदुस्तान जैसा नारा लगाया जाता था और आज इंडियन मुजहिद्दीन अथवा हिंदू मुजाहिद्दीन (अर्थ का अनर्थ न किया जाये…इंडियन का अर्थ हिंदू ही होता है) जैसे हिंदू इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा धमाके करके किया जा रहा है| कुछ लोग हिंदी को एक भाषा मानते हैं ………………

मैं हिंदी ठेठ हिंदी खून हिंदी जात हिंदी हूँ , यही मजहब यही फिरका यही है खानदा मेरा|

भैया जहाँ जहाँ मैंने गलती से हिंदी लिख दिया होगा हिंदू हिंदू कर लीजियेगा|
मेरे द्वारा लिखित सारे पोस्ट यहाँ पढ़े ......www.atharvavedamanoj.jagranjunction.com

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

अल्लाह के नाम पर

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नाम – स्वस्तिका|

उम्र – ११ माह १९ दिन|

तारीख – इस्लामी हिजरी १४३१ के आखिरी महीना जिल्हिज्जा का आखिरी दिन |

स्थान – इबलीस के नुमाइंदों का काबा, दारुले हरब का केन्द्र बनारस|

समय – मुशरिकों की इबादत का समय, जब काफिर बड़ी संख्या में अपने माबूद की इबादत कर रहे हों|

आदेश – और तुम्हारा ईलाह एक अल्लाह है, उसके सिवा कोई माबूद नहीं| (सूरा बकरा – १६३ )

एक धमाका |

परिणाम – वह (काफ़िर) हमेशा इसी हालत में रहेंगे, इनकी न तो सजा ही हलकी की जायेगी और न इनको मुहलत ही मिलेगी| (सूरा बकरा – १६३)

व्याख्या – और लोगों में कुछ ऐसे भी हैं जो अल्लाह के सिवा और को भी बराबर ठहराते हैं ( आधुनिक गांधीवादी और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष) की जैसी मुहब्बत अल्लाह से रखनी चाहिए वैसी मुहब्बत उनसे रखते हैं (ईश्वर, अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान अथवा एस डी वाजपेयी का गीता और कुरआन) और ईमानवाले जो हैं, उनको तो सबसे बढ़कर मुहब्बत अल्लाह से ही होती है ( इसी ब्लॉग मंच पर सिद्ध हो चूका है), और क्या ही अच्छा होता की इन अन्यायियों (काफ़िर, बुतपरस्तों) को सुझाई दे जाता जो उस समय सुझाई देगा (१३-२ -२०१०,२६-११-२००८,३०-१०२००८,२९-९-२००८,२७-९-२००८,१३-९-२००८,२६-७-२००८,२५-७-२००८,१४/१५-८-२००८,२८-७-२००५,७-३-२००६,२२-५-२००७,२३-११-२००७,१-१-२००८ इत्यादि,इत्यादि ) जब अजाब उनके सामने होगा की सारी ताकत ( ए के ४७ ,बम से लेकर छुरे तक ) अल्लाह के ही अधीन है और यह की अल्लाह कड़ा अजाब देने वाला है| ( सूरा बकरा – १६५ )

अब चाहे कितने ही बुद्धिहीन, बुद्धिजीवी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष मसखरे यह सिद्ध करने का प्रयास करें की वाराणसी में जो कुछ भी हुआ उसका कोई धार्मिक आधार न होकर मात्र एक विधिक समस्या है और उसका इस्लाम से कोई वास्ता नहीं, कुरान के आलोक में यह बात पुरी तरह से स्पष्ट है की बनारस में इंडियन मुजाहिद्दीन द्वारा जो कुछ भी किया गया है वह दीनी है और अल्लाह के मुसलमानों के साथ हुए अहद के मुताबिक है| अलहम्दुलिल्लाह रब्बिलाल्मिन अर्थात सब और की प्रशंसा सिर्फ और सिर्फ अल्लाह के लिए है और जलिकल किताबु ला रैब ज साला फीहिज अर्थात यह वह किताब है, जिसमे कोई संदेह नहीं|

मैं आना ही नहीं चाहता था,अश्विनी भाई के साथ हुई दुखद दुर्घटना और मंच पर एक बड़े वर्ग द्वारा सत्य को झुठलाये जाने की प्रवृत्ति ने मुझे अंदर तक झकझोर कर रख दिया था लेकिन मंगलवार के दिन वाराणसी में हिंदू आतंकवादियों के निर्लज्ज आचरण ने एक बार फिर से मुझे इस मंच पर आने के लिए बाध्य कर दिया| हिंदू आतंकवादियों ने अल्लाह के नाम पर धमाका करने के लिए शीतला घाट जैसा जगह चुना अगर यह धमाका दशाश्वमेघ घाट पर हुआ होता तो शायद कुछ और कुर्बानियां मिल सकती थी|

भारतीय समय के अनुसार छह बजकर पांच मिनट पर गंगा आरती प्रारंभ हुई, छह बजकर ३५ मिनट पर जय,जय भागीरथ नंदिनी, मुनिचय चकोर चन्दिनी पूरा भी नहीं हो पाया था आरती स्थल से मात्र २० मीटर की दुरी पर एक शक्तिशाली बम विस्फोट हुआ| बम कूड़ा फेकने वाले डिब्बे में रखा गया था|विस्फोट इतना शक्तिशाली था की शीतला घाट की रेलिंग के परखच्चे उड़ गए|पत्थर के मजबूत बोल्डर उखड गए और धमाके की आवाज २ किलोमीटर तक स्पष्ट रूप से सुनाई पड़ी|विस्फोट के तत्काल बाद हिंदू आतकवादी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन की और से समाचार एजेंसियों ही नहीं कुछेक राष्ट्रवादी ब्लोगरों को भी कुरान की आयत को उद्धृत करते हुए एक इ मेल प्राप्त हुआ जिसमे कहा गया की यह बम विस्फोट इंडियन मुजाहिद्दीन की तरफ से विश्व के महानतम लोकतंत्र में ६ दिसंबर की घटना के उत्तर में है, जब तक मुसलमानों को उनके प्यारे बाबरी खंडहर की क्षतिपूर्ति न कर डी जाय| ऐ कमीने शिव और पारवती के यौनांगो को पूजने वाले मुर्ख भरोसा रख की इंडियन मुजाहिद्दीन,महमूद गजनी,मुहम्मद गोरी,कुतुबुद्दीन ऐबक,फिरोज शाह तुगलक और औरंगजेब (अल्लाह इनको अपनी कुदरत से नवाजे)के बेटों ने यह संकल्प लिया है की तुम्हारे कोई भी मंदिर तब तक सुरक्षित नहीं रहेंगे जब तक की भारत भर में हमारे सारे कब्जे वाले मस्जिद मुसलमानों को सम्मान के साथ लौटा न दिए जांय|

ठीक ऐसी ही शब्दावली मेरे द्वारा लिखित ब्लॉग ”क्या कहता है कुरान हिंदुओं के बारे में भाग-१ ‘ में आज से तीन महीने पहले रमजान में ही किसी अज्ञात टिप्पणीकार द्वारा दाल डी गई थी| अब भी जहाँ भी कुरान की बात होती है ठीक इसी तरह की प्रतिक्रिया ब्लोगरों को प्राप्त होती है|मैं अपने ही द्वारा लिखे गए ब्लॉग पर आई टिपण्णी को उद्धृत करना चाहूँगा………………………

music के द्वारा

August 24, 2010

वाह बेटा तो यह अब मंच की गरिमा के अनुरूप नहीं है. और जो तुमलोगों ने शुरू किया है शायद वोह मंच के लिए सही है. अब ले मैं यह सारी बात हिंदी शब्दों में लिख देता हूँ. तब शायद समझ में आ जाएगा.

अगर तुम हिन्दुओं के हिसाब से लोग चलने लगे तो साले तुम्हारे जैसे लोग तो औरतों को फिर से सटी यानि जिन्दा जलने लगोगे. क्या यही हक दिया है तुम्हारे धर्म ने औरतों को जीने का. पत्नी के मरने पर पति को क्यूँ नहीं जिन्दा जलाते ? येही धर्म है तुम्हारा.

औरतें पवित्र हैं या नहीं इसके लिए तुम्हारे राम ने भी उसे आग पर चलने के लिए मजबूर कर दिया . क्या पत्नी पर विस्वास नहीं रहा तुम्हारा. ऐसी एक घटना हाल ही मैं घटी है. तो क्या तुम्हारे धर्म में मर्दों को ऐसे आग से गुज़ारना पड़ता है. नहीं !. पर क्यूँ. तुमलोगों का बस चले तो हर औरत को आग पर चलवाओ.

अगर औरत को स्तन नहीं हो रहा है तो वोह किसी के साथ भी सो सकती है बच्चा पैदा करने के लिए. क्या येही तुम्हारे धर्म में है. अब ऐसा करने के लिए कहा जाता है तुम्हारे धर्म में औरतों को . क्या येही हिन्दू धर्म है.?

जगह जगह नंगी औरतों की मूर्तियाँ और फोटो बनके तुमलोग क्या साबित करना चाहते हो की औरतों की तुम बहुत इज्ज़त करते हो. सरे अजंता और अल्लोरा की मूर्तियों को देखो, और दुसरे मूर्तियों को भी तो मालूम चलेगा ही यह सब ब्लू फिल्म के स्चेने हैं यानी बिलकुल 100 % porn हैं. क्या ऐसे ही खोल कर रखने की इज़ाज़त देता है तुम्हारा धर्म औरतों के बारे में.

जिस को मान कहते हो ऐसी देवी की मूर्ति बनाते हो. उसके आगे पीछे बार बार हाथ लगते हो. ऊपर नीचे सब जगहों को देखते हो. शर्म नहीं आती तुमलोगों को मान के बदन पर हाथ फेरते हो. और तो और पीछे से डंडा भी लगा देते हो. और कितनी इज्ज़त देना चाहते हो तुमलोग. बंद करो औरतों की अपने धर्म में बेईज्ज़ती . औरतों को सम्मान देना सीखो बेटा.

येही कारण है के हिन्दू औरतें दुसरे धाम के साथ जा रही हैं. क्यूंकि उन्हें वहां इज्ज़त , सम्मान और ज़िन्दगी सभी कुछ मिलता है. सुधर जाओ रे. औरतों की इज्ज़त को नीलम मत करो.

फ़ेंक दो अपने उन किताबों को जिसमें यह सारे गलत बातें लिखी हैं. सुधारो अपने साधू संतों को जो आये दिन रपे और लड़कियों का धंधा करते रहते है. वोह तो वास्तव में दलाल है. कुछ तो शर्म करो.

वोह विष्णु कितना अच्छा था सभी जानते हैं जिसने बलात्कार किया स्त्री का. पवन देवता ने भी ऐसे ही बलात्कार किया जिसका नतीजा हनुमान हुआ. न इधर का रहा न उधर का. एक औरत के साथ पांच पांच मर्द महाभारत में दिखाया. यह तो हद हो गयी.

और तो और सालों ने जुआ में अपने बीवी को ही लगा दिया. यह कौन से इज्ज़त दी है तुमलोगों ने स्त्री को. कृष्ण जहाँ रहा उनकी ही घर में सेंध लगा कर उनकी ही घर के लड़की को भगा ले गया. शर्म करो रे. सुधर जा अभी भी.

जिस लिंग की पूजा करते हो वोह है क्या जानते हो. वोह कुछ और नहीं वोह लिंग ही है. ऐसे स्त्रियों को खेलो मत तुमलोग.|

कहीं ब्लॉगों पर प्रतिक्रिया करने वालो के भी तार इंडियन मुजाहिद्दीन से तो नहीं जुड़े हुए हैं|आप कह सकते हैं की मैंने भी तो प्रज्ञा ठाकुर पर एक पूरी की पूरी कविता ही समर्पित कर दी है,लेकिन मेरा उनसे उतना ही सम्बन्ध है जितना की एक आम पाठक का देश विदेश के अन्य समाचारों के प्रति रहता है|

क्या एक ११ माह के बच्ची की हत्या ही राष्ट्रिय शर्म के प्रतीक बाबरी ढांचे की क्षतिपूर्ति है? यदि हाँ, तो क्षतिपूर्ति हो चुकी है और अब क्या इंडियन मुजाहिद्दीन वाहन पर रामलला के मंदिर निर्माण में सहयोग करेगा? संगठन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति पर ध्यान दीजिए|ऐसा कभी नहीं होगा|एक नहीं हजारों स्वस्तिकाएं भी जिबह कर दी जाएँ तो भी कुरान की रक्त पिपासा शांत नहीं होगी|यहाँ तक की फितना भी बाकी न रह जाए सिर्फ अल्लाह के|

चलो मान लिया|पुरे विश्व में इस्लाम हो गया….अब ….कुरान मौन है क्योंकि नबी उनके आखिरी पैगम्बर है|और जब सब मुर्दे जिला दिए जायेंगे तब उनसे पूछा जायेगा की तुमने अल्लाह को छोड़कर और किसी की उपासना तो नहीं की? और अगर सब मुस्लमान भी हो जाएँ,तब भी यह सवाल पूछा जायेगा…..मिकाइल और जिब्राईल के द्वारा|

सबसे बड़ी बात तो यह है की चाहे एक मारें या एक हजार|जिन लोगों ने अनदेखे, अनजाने हिंदू आतंकवाद के नाम पर हाय तौबा मचा रखा है, क्या बनारस की घटना के बारे में उनके मुंह में उफ्फ़ करने की भी जुबान नहीं है? जाओ राहुल से पूछो की इंडियन मुजाहिद्दीन के बारे में उनका क्या विचार है और यह संघ का कौन सा आनुसांगिक संगठन है? जाओ चिदंबरम से पूछो की हिंदू आतकवाद के इस रूप पर आपकी क्या टिपण्णी है?जाओ जनार्दन द्विवेदी से पूछो की पुरातत्व संग्रहालय से निकले इस कौम के बारे में उनकी क्या मान्यता है? जाओ सोनिया से पूछो की मुद्दे पर पोप से बात करने के लिए वे कब इटली रवाना होंगी?जाओ मनमोहन से पूछो की हेनरी हाइड एक्ट के रूप में गुप्त समझौता करने वाले अमेरिका का इस घटना के प्रति क्या दृष्टिकोण है?

बनारस के साथ हमेशा ही सौतेला व्यवहार किया गया है|दिल्ली राजनैतिक रूप से चर्चित है,मुंबई आर्थिक रूप से चर्चित है तो बनारस धार्मिक,आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से चर्चित है| अगर रोम में पोप को एक चींटीं भी काट ले अथवा काबा में संगे अस्वाद की और मुंह काके एक कुत्ता भी भौंक दे तो वह महीनों तक मिडिया में छाया रहता है|बनारस में २००५ में ही दशाश्वमेघ घाट पर आतंकी हमला हुआ था और प्रशासनिक अमलों में इसे सिलिंडर विस्फोट का नाम दिया गया|क्या सिलिंडर में अमोनियम नाइट्रेट और चारकोल का प्रयोग किया जाता है? बनारस की सुरक्षा के साथ मजाक करने के लिए केन्द्र और राज्य दोनों ही सरकारें दोषी हैं|इस धमाके ने बनारस के अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन उद्योग को दश साल पीछे धकेल दिया हैं|
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