शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

दो घनाक्षरी

(१)
जितने नराधम हैं, आज सभी नेता बनें, इन्हें चुन चुन गोली मार देना चाहिए | 
फूंक देना चाहिए तंदूर की तरह इन्हें, कपड़े की भाँति इन्हें गार देना चाहिए | 
भारत की संस्कृति को नोचने के लिए बने, इनकी रगों में शीशा पार देना चाहिए | 
राष्ट्रद्रोहियों की सजा, मौत से अलग नहीं, मृत्युदेवि कहें दो तो चार देना चाहिए |
(२)
जितनी  लाचारी इस देश में कहीं नहीं है, जनसँख्या बोझ नहीं तुमने बनाया है |
कुछ  गया पेट में तो कुछ पीठ पे भी लदा, बाँटते ही आये हमें बंटना सिखाया है |
पहले  तो चरखा था जिसने था उलझाया, अब तेरा थप्पड़ हमारे हिस्स्से आया है |
झगडे  की जड़ एक नेहरु की नीति बनी, अपना तो खाया हमें नंगा ही नचाया है |



शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

भ्रम टूटा है

सर्जनात्मकता में धैर्य होना चाहिए| फेसबुक अधीर बना देता है| वहाँ लोग आपको लपकने के लिए तैयार बैठे हैं| नारीवादियों को वहाँ पुरुष प्रधान समाज के दर्शन हो सकते हैं| अजनबी लोंगों के अजनबी हाय हैलो किसे बेचैन नहीं कर देते? अंगुलियां दिल की धडकनों से संचालित होने लगती हैं| ना धिन धिन्ना, ना धिन धिन्ना करते हुए टांय टांय फिस्स| एक अदृश्य जगत की दृश्यमान आँखे आपको घूरती रहती हैं| वे अपने भी हो सकते हैं और पराये भी| बंगलादेशी घुसपैठियों के शिविरों का अस्थायी जमावड़ा स्थायी नागरिकता की मांग करने लगता है| अब इसे भ्रम ही रहने देना होगा| यह मेरा अपना पन्ना है| इसमें आपको घुसपैठ की कोई इजाजत नहीं है| आप मुझे पसंद करो या नापसंद| आप मुझे यहाँ से कॉपी नहीं कर सकते, और यदि आपने ऐसा किया तो आपके विचारधारा की कलई उतरने लगेगी| मुझे जो भी मन में आएगा मैं यहाँ करने को स्वतंत्र हूँ|