शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

दो घनाक्षरी

(१)
जितने नराधम हैं, आज सभी नेता बनें, इन्हें चुन चुन गोली मार देना चाहिए | 
फूंक देना चाहिए तंदूर की तरह इन्हें, कपड़े की भाँति इन्हें गार देना चाहिए | 
भारत की संस्कृति को नोचने के लिए बने, इनकी रगों में शीशा पार देना चाहिए | 
राष्ट्रद्रोहियों की सजा, मौत से अलग नहीं, मृत्युदेवि कहें दो तो चार देना चाहिए |
(२)
जितनी  लाचारी इस देश में कहीं नहीं है, जनसँख्या बोझ नहीं तुमने बनाया है |
कुछ  गया पेट में तो कुछ पीठ पे भी लदा, बाँटते ही आये हमें बंटना सिखाया है |
पहले  तो चरखा था जिसने था उलझाया, अब तेरा थप्पड़ हमारे हिस्स्से आया है |
झगडे  की जड़ एक नेहरु की नीति बनी, अपना तो खाया हमें नंगा ही नचाया है |



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें